शीत्सांग में "परी महोत्सव" मनाया गया

14:19:47 2024-12-17
तिब्बती पंचांग के अनुसार, 15 दिसंबर तिब्बती पंचाग के 10वें माह का 15वां दिन था। उस दिन पारंपरिक तिब्बती त्योहार "परी महोत्सव" मनाया गया। इस त्योहार को "पाइलामू महोत्सव" भी कहा जाता है। किंवदंती के अनुसार, तिब्बती बौद्ध धर्म की सर्वोच्च संरक्षकों में से एक, पानतान लामू की बेटी पाइलामू ने अपनी मां की आपत्तियों के बावजूद थ्सीत्सुत्सान के साथ एक निजी जीवन भर का निर्णय लिया। गुस्से में पानतान लामू ने थ्सीत्सुत्सान को ल्हासा नदी के दक्षिणी तट तक पहुँचाया, उसकी शर्त थी कि वे दोनों हर साल तिब्बती पंचाग के केवल 15 अक्टूबर को ही एक-दूसरे से मिल सकते हैं। "परी महोत्सव" के दिन, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी जातीय पोशाक पहनकर राजधानी ल्हासा में जोखान मठ में त्योहार मनाया। उन्होंने पाइलामू की मूर्ति की पूजा की, एक साथ गाना गाया और नृत्य किया।
तिब्बती पंचांग के अनुसार, 15 दिसंबर तिब्बती पंचाग के 10वें माह का 15वां दिन था। उस दिन पारंपरिक तिब्बती त्योहार "परी महोत्सव" मनाया गया। इस त्योहार को "पाइलामू महोत्सव" भी कहा जाता है। किंवदंती के अनुसार, तिब्बती बौद्ध धर्म की सर्वोच्च संरक्षकों में से एक, पानतान लामू की बेटी पाइलामू ने अपनी मां की आपत्तियों के बावजूद थ्सीत्सुत्सान के साथ एक निजी जीवन भर का निर्णय लिया। गुस्से में पानतान लामू ने थ्सीत्सुत्सान को ल्हासा नदी के दक्षिणी तट तक पहुँचाया, उसकी शर्त थी कि वे दोनों हर साल तिब्बती पंचाग के केवल 15 अक्टूबर को ही एक-दूसरे से मिल सकते हैं। "परी महोत्सव" के दिन, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी जातीय पोशाक पहनकर राजधानी ल्हासा में जोखान मठ में त्योहार मनाया। उन्होंने पाइलामू की मूर्ति की पूजा की, एक साथ गाना गाया और नृत्य किया।
तिब्बती पंचांग के अनुसार, 15 दिसंबर तिब्बती पंचाग के 10वें माह का 15वां दिन था। उस दिन पारंपरिक तिब्बती त्योहार "परी महोत्सव" मनाया गया। इस त्योहार को "पाइलामू महोत्सव" भी कहा जाता है। किंवदंती के अनुसार, तिब्बती बौद्ध धर्म की सर्वोच्च संरक्षकों में से एक, पानतान लामू की बेटी पाइलामू ने अपनी मां की आपत्तियों के बावजूद थ्सीत्सुत्सान के साथ एक निजी जीवन भर का निर्णय लिया। गुस्से में पानतान लामू ने थ्सीत्सुत्सान को ल्हासा नदी के दक्षिणी तट तक पहुँचाया, उसकी शर्त थी कि वे दोनों हर साल तिब्बती पंचाग के केवल 15 अक्टूबर को ही एक-दूसरे से मिल सकते हैं। "परी महोत्सव" के दिन, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी जातीय पोशाक पहनकर राजधानी ल्हासा में जोखान मठ में त्योहार मनाया। उन्होंने पाइलामू की मूर्ति की पूजा की, एक साथ गाना गाया और नृत्य किया।
तिब्बती पंचांग के अनुसार, 15 दिसंबर तिब्बती पंचाग के 10वें माह का 15वां दिन था। उस दिन पारंपरिक तिब्बती त्योहार "परी महोत्सव" मनाया गया। इस त्योहार को "पाइलामू महोत्सव" भी कहा जाता है। किंवदंती के अनुसार, तिब्बती बौद्ध धर्म की सर्वोच्च संरक्षकों में से एक, पानतान लामू की बेटी पाइलामू ने अपनी मां की आपत्तियों के बावजूद थ्सीत्सुत्सान के साथ एक निजी जीवन भर का निर्णय लिया। गुस्से में पानतान लामू ने थ्सीत्सुत्सान को ल्हासा नदी के दक्षिणी तट तक पहुँचाया, उसकी शर्त थी कि वे दोनों हर साल तिब्बती पंचाग के केवल 15 अक्टूबर को ही एक-दूसरे से मिल सकते हैं। "परी महोत्सव" के दिन, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी जातीय पोशाक पहनकर राजधानी ल्हासा में जोखान मठ में त्योहार मनाया। उन्होंने पाइलामू की मूर्ति की पूजा की, एक साथ गाना गाया और नृत्य किया।
तिब्बती पंचांग के अनुसार, 15 दिसंबर तिब्बती पंचाग के 10वें माह का 15वां दिन था। उस दिन पारंपरिक तिब्बती त्योहार "परी महोत्सव" मनाया गया। इस त्योहार को "पाइलामू महोत्सव" भी कहा जाता है। किंवदंती के अनुसार, तिब्बती बौद्ध धर्म की सर्वोच्च संरक्षकों में से एक, पानतान लामू की बेटी पाइलामू ने अपनी मां की आपत्तियों के बावजूद थ्सीत्सुत्सान के साथ एक निजी जीवन भर का निर्णय लिया। गुस्से में पानतान लामू ने थ्सीत्सुत्सान को ल्हासा नदी के दक्षिणी तट तक पहुँचाया, उसकी शर्त थी कि वे दोनों हर साल तिब्बती पंचाग के केवल 15 अक्टूबर को ही एक-दूसरे से मिल सकते हैं। "परी महोत्सव" के दिन, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी जातीय पोशाक पहनकर राजधानी ल्हासा में जोखान मठ में त्योहार मनाया। उन्होंने पाइलामू की मूर्ति की पूजा की, एक साथ गाना गाया और नृत्य किया।
तिब्बती पंचांग के अनुसार, 15 दिसंबर तिब्बती पंचाग के 10वें माह का 15वां दिन था। उस दिन पारंपरिक तिब्बती त्योहार "परी महोत्सव" मनाया गया। इस त्योहार को "पाइलामू महोत्सव" भी कहा जाता है। किंवदंती के अनुसार, तिब्बती बौद्ध धर्म की सर्वोच्च संरक्षकों में से एक, पानतान लामू की बेटी पाइलामू ने अपनी मां की आपत्तियों के बावजूद थ्सीत्सुत्सान के साथ एक निजी जीवन भर का निर्णय लिया। गुस्से में पानतान लामू ने थ्सीत्सुत्सान को ल्हासा नदी के दक्षिणी तट तक पहुँचाया, उसकी शर्त थी कि वे दोनों हर साल तिब्बती पंचाग के केवल 15 अक्टूबर को ही एक-दूसरे से मिल सकते हैं। "परी महोत्सव" के दिन, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी जातीय पोशाक पहनकर राजधानी ल्हासा में जोखान मठ में त्योहार मनाया। उन्होंने पाइलामू की मूर्ति की पूजा की, एक साथ गाना गाया और नृत्य किया।
तिब्बती पंचांग के अनुसार, 15 दिसंबर तिब्बती पंचाग के 10वें माह का 15वां दिन था। उस दिन पारंपरिक तिब्बती त्योहार "परी महोत्सव" मनाया गया। इस त्योहार को "पाइलामू महोत्सव" भी कहा जाता है। किंवदंती के अनुसार, तिब्बती बौद्ध धर्म की सर्वोच्च संरक्षकों में से एक, पानतान लामू की बेटी पाइलामू ने अपनी मां की आपत्तियों के बावजूद थ्सीत्सुत्सान के साथ एक निजी जीवन भर का निर्णय लिया। गुस्से में पानतान लामू ने थ्सीत्सुत्सान को ल्हासा नदी के दक्षिणी तट तक पहुँचाया, उसकी शर्त थी कि वे दोनों हर साल तिब्बती पंचाग के केवल 15 अक्टूबर को ही एक-दूसरे से मिल सकते हैं। "परी महोत्सव" के दिन, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी जातीय पोशाक पहनकर राजधानी ल्हासा में जोखान मठ में त्योहार मनाया। उन्होंने पाइलामू की मूर्ति की पूजा की, एक साथ गाना गाया और नृत्य किया।
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तिब्बती पंचांग के अनुसार, 15 दिसंबर तिब्बती पंचाग के 10वें माह का 15वां दिन था। उस दिन पारंपरिक तिब्बती त्योहार "परी महोत्सव" मनाया गया। इस त्योहार को "पाइलामू महोत्सव" भी कहा जाता है। किंवदंती के अनुसार, तिब्बती बौद्ध धर्म की सर्वोच्च संरक्षकों में से एक, पानतान लामू की बेटी पाइलामू ने अपनी मां की आपत्तियों के बावजूद थ्सीत्सुत्सान के साथ एक निजी जीवन भर का निर्णय लिया। गुस्से में पानतान लामू ने थ्सीत्सुत्सान को ल्हासा नदी के दक्षिणी तट तक पहुँचाया, उसकी शर्त थी कि वे दोनों हर साल तिब्बती पंचाग के केवल 15 अक्टूबर को ही एक-दूसरे से मिल सकते हैं। "परी महोत्सव" के दिन, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी जातीय पोशाक पहनकर राजधानी ल्हासा में जोखान मठ में त्योहार मनाया। उन्होंने पाइलामू की मूर्ति की पूजा की, एक साथ गाना गाया और नृत्य किया।