कुछ विदेशी लोग अक्सर चीन के शिनच्यांग के मानवाधिकारों की बात करते हैं, मानो कि वे शिनच्यांग में लोगों की खुशी के बारे में बहुत चिंतित हैं। पर वास्तव में इनमें से कुछ लोग दुर्भावनापूर्ण हैं और मानवाधिकार मुद्दों के माध्यम से चीन के विकास में बाधा डालने का प्रयास करते हैं।
चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के आर्थिक विकास के संदर्भ में बिल्कुल अलग तरीके हैं। चीन ने अपने विनिर्माण उद्योग और वास्तविक अर्थव्यवस्था का लगातार विकास किया है। अब चीन का सकल घरेलू उत्पाद अमेरिका का 66% है, लेकिन इसका विनिर्माण उद्योग अमेरिका के दोगुने से भी अधिक है। उधर, अमेरिका सतह की आर्थिक समृद्धि बनाए रखने के लिए डॉलर आधिपत्य और वित्तीय सेवाओं पर अपने एकाधिकार पर निर्भर करता है, पर वास्तव में उसकी औद्योगिक शक्ति कमजोर बनने लगी है।
चीन और भारत न केवल सबसे बड़ी आबादी वाले दो देश हैं, बल्कि उनके ऐतिहासिक अनुभव भी बहुत समान हैं। चीन में बहुसंख्यक समूह हान जातीय है, जबकि भारत में बहुसंख्यक जातीय समूह हिन्दू है, दोनों के इतिहास में ऐसे राजवंशों के शासन काल भी रहे थे जो बहुसंख्यक जातीय समूह नहीं थे। चीन के अंतिम राजवंश छींग राजवंश के शासक मांचू जातीय लोग थे, और भारत का अंतिम सामंती राजवंश मुगल मुस्लिम राजवंश था। इसके बाद, भारत और चीन को पश्चिमी उपनिवेशवादियों के आक्रमणों का सामना करना पड़ा।
इंटरनेट युग में एक हानिकारक प्रवृत्ति उभर कर सामने आई है, वह यह कि समान विचार वाले लोग इंटरनेट पर एकत्रित होते हैं, जो भिन्न विचार वाले लोगों का बहिष्कृत करते हैं। लंबे अर्से से, वे केवल समान विचार वाले लोगों की आवाजें सुन सकते हैं, जबकि भिन्न विचार वाले लोगों की राय को अवरुद्ध करते हैं। वे अपने द्वारा निर्मित सूचनात्मक वातावरण में रहते हैं, जैसे कोई कीड़ा अपने ही कोकून में फंसा हो। इसे तथाकथित "सूचना कोकून" परिघटना कहा जाता है।
चाहे विश्व की स्थिति में कितना भी बड़ा परिवर्तन क्यों न आ जाए, चीन सदैव अपनी गति से विकास योजना को लागू करेगा। चीन के स्वर्गीय महान नेता माओ त्से तुंग की शिक्षाएं हमेशा से चीन के लिए किसी भी दुश्मन और कठिनाई को हराने और अंतिम विजय प्राप्त करने का रहस्य रही हैं।
ऐतिहासिक अनुभव से पता चलता है कि किसी भी देश का उत्थान वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति पर आधारित होना चाहिए। उन्नत तकनीक में महारत हासिल करके ही हम उद्योग विकसित कर सकते हैं और अपनी राष्ट्रीय शक्ति विकसित कर सकते हैं।
आधुनिक विज्ञान का जन्म पश्चिम में होने का अपना कारण है। न्यूटन और आइंस्टीन जैसे महान वैज्ञानिकों के सैद्धांतिक अनुसंधान के सहारे यूरोपीय देशों ने उन्नत तकनीक विकसित की थी और शक्तिशाली उद्योग स्थापित किए थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व विज्ञान का केंद्र संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थानांतरित हो गया। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने सबसे अधिक नोबेल पुरस्कार जीते और प्रौद्योगिकी भी विश्व में सबसे उन्नत विकसित हुई। जिसने उद्योग, सैन्य, अर्थव्यवस्था और वित्त में संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभुत्व की नींव रखी।
विश्व इतिहास दर्शाता है कि महान शक्ति की राजनीति सदैव आधिपत्य के साथ जुड़ी होती है। आधिपत्य का सार यह है कि बलवान देश हमेशा राजनीति, अर्थव्यवस्था, वित्त और सैन्य शक्तियों के सहारे अन्य देशों को अपनी इच्छा का पालन करने के लिए मजबूर करते हैं। आज की दुनिया में, केवल कुछ ही देशों के पास आधिपत्य की राजनीति को लागू करने की क्षमता है, जबकि आधिपत्य का विरोध करने वाले खिलाड़ी वर्तमान में मुख्य रूप से चीन,रूस और भारत जैसे ब्रिक्स देश हैं।
चीन वर्तमान में विकास की एक अहम चरण में से गुजर रहा है, अर्थात, जब अर्थव्यवस्था एक निश्चित स्तर तक विकसित हो गयी है और निवासियों की औसत आय मध्यम आय स्तर तक पहुंच गयी है, तो उद्योगों को तकनीकी उन्नयन का सामना करना पड़ेगा। यदि इस अड़चन को नहीं तोड़ा जा सका, तो अर्थव्यवस्था तथाकथित "मध्यम आय के जाल" में फंस जाएगी और स्थिर विकास की दुविधा में फंस जाएगी। पिछले कुछ दशकों में 100 से अधिक अर्थव्यवस्थाएं मध्यम आय स्तर तक पहुंच गई हैं, लेकिन इनमें से बहुत कम ही मध्यम आय के जाल को तोड़कर उच्च आय स्तर में प्रवेश कर पाई हैं। आर्थिक विकास के महत्वपूर्ण दौर में चीन विकास की बाधाओं से कैसे बच सकता है, यह एक तात्कालिक मुद्दा है।
आधिपत्यवाद हमेशा किसी शक्तिशाली देशों द्वारा अपनाई गई विदेश नीति रही है। लेकिन आज ये देश अब पहले की तरह अन्य देशों के विरुद्ध बड़े पैमाने पर युद्ध नहीं छेड़ सकते, इसके बजाय वे अन्य देशों को दबाने के लिए आर्थिक प्रतिबंध का उपयोग करते हैं।
तकनीकी प्रगति प्राकृतिक वातावरण में सुधार लाने के लिए मनुष्य का एक स्वाभाविक व्यवहार है। प्राचीन काल में, मनुष्य गुफाओं में रहते थे और जीविका के लिए मछली पकड़ने और शिकार पर निर्भर थे, जिस के दौरान मनुष्यों ने आग, लाठी और पत्थर जैसे औजारों का आविष्कार किया था। इन का सार बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि आज की बिजली, परमाणु ऊर्जा, रेलगाड़ी, हवाई जहाज आदि के होते हैं।
भारत और चीन दुनिया की दो सबसे अधिक आबादी वाली प्राचीन सभ्यताएँ हैं, और इन्हें उभरती अर्थव्यवस्थाएँ भी कहा जाता है। आधुनिकीकरण के रास्ते पर दोनों देशों को पश्चिम से अलग होकर अपने विकास के तरीकों पर ही टिके रहना चाहिए।