चीन-भारत संबंध दुनिया के सबसे जटिल और अप्रत्याशित द्विपक्षीय संबंधों में से एक हैं। सतह पर, चीन-भारत संबंधों की कठिनाइयां सीमा टकराव से पैदा होती हैं, पर वास्तव में, अधिक जटिल जड़ चीन और भारत इन दो देशों के राष्ट्रीय मनोविज्ञान का अंतर मौजूद है, जिससे उनकी एक-दूसरे और पूरी दुनिया को देखने की दृष्टि अलग है। यद्यपि दोनों पक्षों के प्रयासों के बाद हाल के दिनों में चीन-भारत संबंधों में धीरे-धीरे गर्मजोशी के संकेत दिखाई दिए हैं, लेकिन कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सकता कि बाहरी परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ दोनों देशों के संबंधों में क्या नए मोड़ आएंगे।
हाल ही में, अमेरिकी मीडिया ने "दुनिया में सर्वोत्तम जीवन गुणवत्ता वाले 50 देशों" को निर्वाचित किया, जिसके अनुसार चीन 26वें, संयुक्त राज्य अमेरिका 22वें, सिंगापुर 23वें, दक्षिण कोरिया 25वें, जापान 14वें और भारत 40वें स्थान पर है। चार नॉर्डिक देश दुनिया में शीर्ष पर हैं, लेकिन विकासशील देशों में चीन और भारत का प्रदर्शन अपेक्षाकृत अच्छा है, हालांकि उनकी प्रति व्यक्ति जीडीपी सबसे अधिक नहीं है। इससे यह जाहिर है कि आर्थिक सूचकांक के अलावा, सामाजिक विकास संकेतक भी बहुत महत्वपूर्ण हैं।
प्राचीन काल में चीन और भारत दोनों का उत्पाद मूल्य एक बार दुनिया की एक तिहाई या एक चौथाई तक जा पहुंचा था। लेकिन, उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के आक्रमण ने हमें एहसास दिलाया कि धन और संपत्ति की मात्रा ही सब कुछ नहीं है। पश्चिमियों के उन्नत हथियारों के सामने पिछड़े देशों की संपत्ति सिर्फ़ आक्रमणकारियों की लूट बन सकती है। इसलिए स्वतंत्रता और मुक्ति प्राप्त करने के बाद चीन और भारत सहित कई विकासशील देशों ने आधुनिकीकरण को अपने आर्थिक विकास का केंद्र बनाया।
महान लेखक रवींद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कृति गीतांजलि दुनिया भर के पाठकों के दिलों में एक क्लासिक बन गई है। इस तरह की महान रचनाएं न केवल मानवीय भावनाओं से परिपूर्ण हैं, बल्कि जीवन प्रकृति की खोज को भी प्रतिबिंबित करती हैं। चाहे कविता हो या अन्य साहित्यिक रचनाएं, वे सभी मानव आत्मा की खोज के माध्यम से जीवन का अर्थ तलाशती हैं।
चीन ने 2025 में आर्थिक विकास का लक्ष्य 5% तक तय किया है, जबकि वर्तमान में चीनी जीडीपी लगभग 19 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है, एक इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए, पारंपरिक विनिर्माण और सेवा उद्योगों के विकास पर भरोसा करके तेजी से विकास हासिल करना अवास्तविक है। आगे विकास केवल नई तकनीकी क्रांति और नई गुणवत्ता उत्पादकता के विकास से ही हो सकता है।
एक बार एआई यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक किसी पाइंट को पार कर जाएगी, तो इसकी लंबी छलांग अपरिहार्य होगी। अमेरिका में ओपनएआई के बड़े मॉडल का उद्भव दर्शाता है कि एआई तकनीक की उल्लेखनीय प्रगति हासील की गई है, उधर चीनी कंपनी डीपसीक के बड़े मॉडल ने यह साबित किया है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता अब एक ऐसी तकनीक नहीं है जो केवल कुछ ही सूपरपॉवर के पास हो सकती है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता निश्चित रूप से एक ऐसा उपकरण बन जाएगा जो सभी लोगों के जीवन में एक बड़ा बदलाव लाएगा।
जब किसी देश की ताकत की बात की जाती है, तो कई लोग वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति, बड़े पैमाने पर निर्माण परियोजनाओं और औद्योगिक और कृषि उत्पादों के उत्पादन के बारे में सोचते हैं। पर इन की तुलना में एक और महत्वपूर्ण बात है संगठनात्मक क्षमता। वास्तव में, कुछ हार्डवेयर सुविधाओं की तुलना में संगठनात्मक क्षमता अधिक निर्णायक भूमिका निभाती है। चीन में रहने वाले कई विदेशियों ने पाया है कि चीनी समाज स्थिर और शांतिपूर्ण है, लोग व्यवस्थित तरीके से रहते हैं और विभिन्न सामाजिक गतिविधियाँ सुव्यवस्थित तौर पर आयोजित की जाती हैं। चीन का एक सुव्यवस्थित समाज है, जिसके आधार पर चीन आर्थिक विकास और निरंतर तकनीकी प्रगति हासिल कर सकता है।
2025 को मजबूत एआई प्रौद्योगिकी के पहले वर्ष के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि एआई मानव चेतना के करीब एजीआई की ओर बदलेगा। एआई तकनीक इंसानों के लिए जबरदस्त क्षमताएं और सुविधाएं लेकर आती है, लेकिन यह बड़ी चिंताएं भी लेकर आती है। यानी एआई तकनीक के विकास से कई मौजूदा रोजगार अवसरों में बदलाव आ सकता है। चूंकि मानव समाज में अब तक हुए हर बड़े परिवर्तन वास्तव में नई उत्पादकता के विकास के कारण ही हो चुके थे। एआई प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पादकता में लाई गई उछाल का मौजूदा सामाजिक स्वरूप पर अनिवार्य रूप से गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने हाल में कहा कि चीन और भारत को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करना चाहिए। साथ ही, दोनों देशों के बीच संबंधों को सीमा मुद्दे से परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए, और विशिष्ट मतभेदों को दोनों देशों के बीच संबंधों की समग्र स्थिति को प्रभावित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। वास्तव में, चीन ने हमेशा दोनों देशों के बीच संबंधों का स्वस्थ और स्थिर विकास को बढ़ावा देने के लिए कोसिश कर रहा है। पर अगर भारत में कुछ व्यक्ति चीन के खिलाफ सख्त रुख अपनाकर अमेरिका को खुश करने की कोशिश करते हैं, तो इससे किसी भी पक्ष के हित में नहीं है।
हाल ही में, चीनी राजधानी पेइचिंग की स्थानीय सरकार ने अपनी एक एआई प्रौद्योगिकी विकास योजना में यह प्रस्तुत किया कि 2027 के अंत तक एआई और रोबोटिक्स में 100 प्रमुख प्रौद्योगिकियों का विकास करेगा, रोबोट उद्योग श्रृंखला के बुनियादी स्थानीयकरण को पूरा करेगा और एक ट्रिलियन-स्तरीय औद्योगिक क्लस्टर की स्थापना करेगा। यह योजना न केवल सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर प्रौद्योगिकियों का विकास से संबंधित है, बल्कि भविष्य की पारिवारिक सेवाओं, बुजुर्गों की देखभाल, विकलांगता सहायता, चिकित्सा देखभाल आदि को भी व्यापक रूप से प्रभावित करेगी।
हमारी गौरवशाली ऐतिहासिक सभ्यता एक महान प्रेरक शक्ति है जो हमें राष्ट्रीय कायाकल्प के लिए प्रयास करने हेतु प्रेरित करती है, लेकिन कभी-कभी यह एक आध्यात्मिक बोझ भी बन जाती है। छोटे इतिहास वाले कुछ देशों में लोगों की तुलना में, चीन और भारत के लोग इतिहास के गौरव और वास्तविकता के पिछड़पेन के अनुभव में अधिक लिप्त रहते हैं। यही कारण है कि चीन और भारत दोनों ने विशाल राष्ट्रीय विकास योजनाएं तैयार की हैं और उन्हें अपना राष्ट्रीय कायाकल्प हासिल करने के लिए और अधिक प्रयास करने होंगे।
किसी भी देश के आर्थिक विकास और तकनीकी प्रगति के लिए प्रतिभा सदैव सबसे महत्वपूर्ण कारक होती है। उदाहरण के लिए, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा औद्योगिक देश बन गया, तब कई वैज्ञानिक युद्धग्रस्त यूरोप को छोड़कर अमेरिका चले गए, जिन्हों ने अमेरिका को दुनिया का विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र बनने की नींव रखी।