आज की विश्व अर्थव्यवस्था चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच प्रतिस्पर्धा से प्रभावित है। चीन-अमेरिका आर्थिक संबंधों में अनिश्चितता वैश्विक बाजार में बदलाव की दिशा तय करती है। पिछले नियमों के अनुसार, अमेरिकी डॉलर विनिमय दर की गिरावट से ब्याज दर में कटौती के चक्र में प्रवेश होना चाहिये। पर अमेरिकी सरकार के द्वारा प्रमुख व्यापारिक साझेदारों पर टैरिफ बढ़ाया जाने से डॉलर ऊंचा हो जाता है।
यह निर्विवाद है कि महामारी के प्रभाव से चीन की आर्थिक वृद्धि धीमी होने लगी, सामाजिक उपभोग क्षमता में गिरावट आई और कई छोटे और मध्यम आकार वाले उद्यमों तथा रियल एस्टेट उद्योग की स्थिति और भी खराब हो गई है। इसके साथ-साथ निर्यात, निवेश और उपभोग सभी में भी गिरावट नजर आ रही है। उधर, अमेरिका चीनी उद्योगों का दमन कर रहा है, जिससे विश्व में चीन के व्यापार, प्रौद्योगिकी, वित्त और संस्कृति के सहयोग को बाधित की गयी है।
हाल ही में ईरान और सऊदी अरब ने एक बार फिर इन दोनों देशों के बीच संबंधों में मध्यस्थता के लिए चीन की सकारात्मक भूमिका की प्रशंसा की। तथ्यों ने साबित कर दिया है कि कुछ पश्चिमी राजनेताओं द्वारा प्रचारित तथाकथित "चीन खतरा" पूरी तरह से गलत है। चीन अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक महत्वपूर्ण भागीदार और शांति निर्माता है।
चीन के शीत्सांग (तिब्बत) स्वायत्त प्रदेश का विशेष प्राकृतिक वातावरण होता है और इस कारण से इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास करना असंभव है, जबकि वहां अद्वितीय प्राकृतिक वातावरण पर्यटन के विकास के लिए सबसे बड़ा अच्छा होता है। तिब्बत चीन और यहां तक कि पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक सुरक्षा बाधा है। इसलिए स्थानीय सरकार नई विकास अवधारणा के अनुसार आधुनिक अर्थव्यवस्था प्रणाली के निर्माण पर जोर देती है और इस हरी और शुद्ध भूमि की रक्षा के लिए काम करती है।
चीन ने सुधार और खुलेपन में विनिर्माण के विकास को प्राथमिकता की नीति अपनायी, जिससे उसने विशाल आबादी की रोजगार समस्या का समाधान किया और दीर्घकालिक विकास की नींव रखी। साथ ही, चीन ने सेवा उद्योग का भी जोरों से विकास किया, क्योंकि सेवा उद्योग के बिना लोगों के जीवन में सुधार नहीं किया जा सकता है, और सेवा उद्योग बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर भी प्रदान कर सकता है। चीन का सेवा उद्योग अपने स्वयं के विनिर्माण उद्योग पर निर्भर करता है, जबकि अमेरिका और पश्चिमी विकसित देशों ने उच्च ऊर्जा खपत और उच्च उत्सर्जन विनिर्माण उद्योगों को अन्य देशों में स्थानांतरित कर दिया है, और खुद तो उच्च तकनीक उद्योगों और सेवा के विकास पर ध्यान केंद्रित किया है।
प्राचीन काल से, मनुष्य विभिन्न प्रकार की संपत्ति बनाने के लिए अपने स्वयं के श्रम पर निर्भर रहा है, जैसे कि श्रमिक काम करते हैं, किसान खेती करते हैं, जिनसे भोजन और विभिन्न निर्मित सामान प्राप्त होते हैं। लेकिन आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता का नवीनतम विकास लोगों के जीवन और उत्पादन के तरीकों को गहराई से बदल रहा है, कंप्यूटर प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास के साथ, यह तेजी से लोगों की जगह लेने वाली मशीनों के लिए एक वास्तविकता बनती जा रही है। चीन में कई मानवरहित कारखानों और तथाकथित ब्लैक-लाइट कार्यशालाओं ने मानवयुक्त कारखानों का स्थान ले लिया है, जबकि अमेरिकी एआई अपने दम पर कुछ नए प्रमेयों और प्रौद्योगिकियों का आविष्कार करने में सक्षम है। इससे मानव श्रम के मूल्य पर प्रश्न उठता है।
पश्चिम की तुलना में, चीन और भारत जैसे प्राचीन पूर्वी देशों का इतिहास हजारों साल पुराना है। लेकिन आधुनिक समय में, पश्चिमी देशों ने तकनीकी प्रगतियों के आधार पर बाहरी विस्तार और उपनिवेशक लूट शुरू की थी और फिर एक परिपक्व पूंजीवादी व्यवस्था का निर्माण किया था। हालाँकि, पूर्वी देशों के लिए पश्चिमी ताकतों की सफलता दर्दनाक अनुभव था। 1840 में अफ़ीम युद्ध के बाद से, चीन ने छोटे-बड़े अनगिनत संकटों का अनुभव किया, पर चीन ने अपनी शक्तियों से संकटों का सामना कर उन्हें अवसरों में बदल दिया।
1978 में सुधार और खुलेपन कायम करने के बाद चीन ने विनिर्माण के विकास को प्राथमिकता देने का रास्ता चुना। पर विनिर्माण उद्योग के विकास के लिए प्रतिभा और धन दो आवश्यक शर्तें हैं। धन,उपकरण और प्रौद्योगिकी को विदेशों से लाया जा सकता है, लेकिन प्रतिभाएं शिक्षा के विकास पर आधारित हैं। चीन बुनियादी शिक्षा को बहुत महत्व देता है। इसी रास्ते से चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित हुआ है और उच्च तकनीक क्षेत्र में चीन ने अमेरिका और पश्चिम के एकाधिकार को चुनौती देना शुरू कर दिया है।
लोकतंत्र और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर अमेरिका और पश्चिम के दोहरे मानदंड बहुत स्पष्ट हैं। किसी कारण या राजनीतिक उद्देश्य से, वे अपने ही देश, सहयोगी देशों और प्रतिद्वंद्वी देशों में होने वाली समान घटनाओं के प्रति पूरी तरह से अलग रवैया अपनाते हैं। यही है विशिष्ट दोहरा मानक।
नई अमेरिकी सरकार सत्ता में आ रही है और विश्व जनमत का ध्यान चीन-अमेरिका संबंधों पर केंद्रित हो गया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि नई अमेरिकी सरकार चीन के साथ अपनी नीतियों में क्या बदलाव करती है, इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। लेकिन, चीन-अमेरिका संबंधों को किस दिशा में विकसित होना चाहिए, इसके प्रति अलग-अलग लोगों का दृष्टिकोण पूरी तरह से अलग है। यह उनके पूरी तरह से अलग मूल्यों से निर्धारित होता है।
हाल ही में आयोजित एक केंद्रीय आर्थिक सम्मेलन में चीनी केंद्र ने 2025 के लिए अपने आर्थिक विकास लक्ष्यों के लिए "मामूली ढीला" मार्गदर्शन सामने रखा। दरअसल, 14 साल में यह पहली बार है कि चीन ने अधिक सक्रिय मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों का प्रस्ताव दिया है।
शिक्षा, चिकित्सा देखभाल और आवास जैसे उद्योग सीधे लोगों की आजीविका से संबंधित हैं, इसलिए जनता ऐसी सेवाओं की गुणवत्ता पर संवेदनशील है। किसी भी देश को लोगों की आजीविका उद्योगों के स्वस्थ विकास को एक महत्वपूर्ण स्थान पर रखना चाहिए। साथ ही, सरकार को कमजोर समूहों के लिए विशेष देखभाल नीतियां भी पेश करनी चाहिए और सभी आजीविका उद्योगों को बाजार में धकेलना सही नहीं है, क्योंकि यह अनिवार्य रूप से कुछ गरीब लोगों को अधिक मुश्किलें पैदा की जाएंगी।